यूके में काम करने वाले भारतीय की ज़िंदगी – क्या होता है असली जज्बा?
हाय दोस्तों! अगर आप सोच रहे हैं कि यूके में काम करने का सफ़र कैसे रहता है, तो यही जगह है जहाँ आपको सच्ची बातें मिलेंगी। मैं खुद के या किसी दोस्त के अनुभव को आपके सामने रख रहा हूँ – बिलकुल चाय की तरह, थोड़ा मीठा, थोड़ा कड़वा, और पूरी तरह से असली।
पहला दिन: ठंड और नई संस्कृति
पहली बार लैंडिंग पर सबसे बड़ी चीज़ होती है ठंड। भारतीय सर्दी तो बस ‘ठंडा’ ही होती है, पर यहाँ की ठंड अपने आप में एक नई दुनिया है। सुबह उठते‑ही जरा‑सी नाक से खून बहता है, लेकिन आगे की सड़कों की धूप, टॉयलेट में टॉवल की साफ़‑सफ़ाई और लोगों की मुस्कान आपको जल्दी ही आराम दे देती है। लोग यहाँ ‘पॉलीटिक’ होते हैं, मतलब बात‑बात में ‘सॉरी’ और ‘थैंक यू’ सुनते‑सुनते आपका अहंकार भी कम हो जाता है।
भोजन की बात आए तो पहली बार ‘फिश एंड चिप्स’ के साथ ‘डॉली पैन’ का स्वाद ले। पहला बाइट ले कर दिमाग में सवाल उठता है – ‘भारत की दाल‑चावल की याद क्यों नहीं आती?’ यही तो असली झटका है। पर फिर धीरे‑धीरे ‘ब्रेकफ़ास्ट बिन’ में अंडे, बेकन, टोस्ट, और एक कप हाई‑टीन पूड मिलते‑जाते हैं, और आप समझते हैं कि यहाँ भी खाने‑पीने में विविधता है।
दूसरा कदम: घर की याद और भारतीय फिर भी
भले ही आप नई चीज़ों से घिरे हों, ‘डाल‑चावल’ की याद एकदम तेज़ी से लौट आती है। तब आप ऑनलाइन सुपरमार्केट में ‘बासमती चावल’, ‘आटा’, और ‘साबूदाना’ ढूंढते हैं। दही, पापड़, अचार – सब कुछ यहाँ ले जाना आसान नहीं, पर हिंदी‑टॉक्सी या ‘इंडियन ग्रॉसरी’ की दुकान खुलती‑खुलती आपको अपने घर जैसा महसूस कराती है।
काम की बात करें तो यूके में ऑफिस का माहौल बिलकुल अलग है। मीटिंग में टाइम‑कीपिंग सख़्त है, कॉफ़ी ब्रेक पर हर कोई अपने लैपटॉप पर कुछ न कुछ करता है। यहाँ की ‘फ्लैट‑हायरार्की’ यानी सब एक दूसरे के साथ बराबर होते हैं, इसलिए आपकी राय को ज़्यादा सम्मान मिलता है। अगर आप खुद को ‘क्लाइंट‑फोकस्ड’ बनाते हैं, तो प्रमोशन की राह खुद‑बख़ुद खुल जाती है।
ऐसे में भारतीयों की ‘जबरदस्त रिस़िलियंस’ काम आती है। कोई भी कठिनाई आए – चाहे वह ठंड हो या नई भाषा, आप अपनी ‘जुगाड़’ से हर समस्या का हल निकाल लेते हैं। नए दोस्त बनते हैं, कुछ काम‑काजी ग्रुप्स में शामिल होते हैं, और धीरे‑धीरे आप भी ‘डिनर‑प्लैन’ में ‘यहाँ की संस्कृति’ को अपना बनाते हैं।
उदाहरण के तौर पर, मेरे एक दोस्त ने ‘साबूदाना खिचड़ी’ को ऑफिस लंच में लाया और सभी को ‘इंडियन फ्यूजन’ की खुशबू महसूस कराई। सब ने मिल कर तस्वीरें लीं, फिर सोशल मीडिया पर ‘#UKIndianTaste’ टैग किया। इतना ही नहीं, उसके बॉस ने भी ‘कर्मचारी‑संतुष्टि’ के नाम पर एक बार ‘इंडियन टाउन हॉल’ आयोजित किया, जहाँ चाय‑नाश्ते के साथ ‘हॉफ़्सिल्फ़’ पर चर्चा हुई।
हर नई जगह में दो चीज़ें जरूरी होती हैं – खुले दिमाग और छोटी‑छोटी खुशी की तलाश। यूके में काम करने वाले भारतीय को भी यही करना चाहिए। दाल‑चावल की यादों को साथ ले कर, नई भाषा, नई संस्कृति, और नई नौकरी का अनुभव एक साथ नया रंग देता है।
तो अगर आप भी यूके में काम करने की सोच रहे हैं, तो डरने की जरूरत नहीं। थोडी‑सी तैयारी, सही दोस्ती, और अपने भारतीय पॉटली को हल्का‑हल्का साथ रखिए – आपका सफ़र एक ‘रोलरकोस्टर’ बन जाएगा, जहाँ मज़ा हर मोड़ पर आपका इंतज़ार करता है।
एक भारतीय का जीवन कैसा होता है जो अपने काम के लिए यूके चला जाता है?
- अभिजात द्विवेदी
- अग॰ 1 2023
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हाय दोस्तों! यह ब्लॉग मैं आपके साथ वो अनुभव साझा करने जा रहा हूं, जो एक भारतीय को अपने काम के लिए यूके जाने पर होता है। यह एक मिश्रण होता है चाय की तरह, कुछ मीठा, कुछ कड़वा, लेकिन जब बनता है तो यह बहुत ही मजेदार होता है। भारतीयों के लिए यूके में जीना एक नया अनुभव होता है, जहां हम नयी संस्कृति, भाषा और खाना सीखते हैं, हाँ मगर दाल चावल की याद भी आती है। यह एक अद्वितीय यात्रा होती है, जिसमें हमें अगर ठंडी भी लगती है, तो वहीं भारतीय संस्कृति की गर्मी भी मिलती है। अंत में, मैं कहूंगा कि यह एक रोलरकोस्टर राइड होती है, जिसका मजा हर एक भारतीय को लेना चाहिए।
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