महिलाओं के साथ अक्सर कई बार ज्यादती होती ही रहती है ऐसी कई खबरे सामने एक से बढ़कर के आती है और ऐसे मामलो में फिर क़ानून हमेशा उनके साथ खड़ा होता है इस बात में कोई शक नही है क्योंकि भारत के समाज को हमेशा से ही पुरुष प्रधान समाज ही माना जाता है और कहते है कि एक महिला अगर कुछ करती है तो पुरुष के अधीन रहकर के ही करती है, ऐसे में क़ानून फिर हमेशा ही कमजोर के यानी महिला के पक्ष में ही खड़ा दिखाई पड़ता है फिलहाल हम महिलाओं को मिले कुछ एक कानूनी अधिकारों की बात करते है जो उन्हें क़ानून के द्वारा दिए गये है और उन्हें उनसे कोई भी छीन नही सकता है
सबसे पहला और अहम् कानून तो ये है कि कोई भी महिला अपने पार्टनर को भी अपनी मर्जी के बिना अपने साथ सम्बन्ध बनाने से मना कर सकती है, इसके लिए अगर वो जबरदस्ती करता है या फिर महिला के साथ अप्राकृतिक ढंग से सम्बन्ध बनाता है तो फिर ये शारीरिक शोषण की ही श्रेणी में आता है और इसमें महिला अपने ही पति के खिलाफ केस दर्ज करवाने के लिए स्वतंत्र है।
इसके बाद आते है अगले सवाल पर या फिर अधिकार पर कि अगर कोई जोड़ा आपस में संबध बना ले और ऐसे में महिला गर्भवती हो जाए तो फिर बच्चे का क्या होगा अगर वो शादी न किये हो? तो ऐसे में महिला को बिलकुल ये पत्नी का दर्जा देने के लिए पुख्ता आधार है और बच्चे को भी उसी पुरुष के बेटे के रूप में कानूनी मान्यता मिल जायेगी ऐसे में पुरुष को ही उसका भरण पोषण भी करना होगा और ये कानून्नी नही बल्कि इंसानियत और सामाजिक दायित्व भी है जिसे इन्सान को अपनी समझ से विकसित करना चाहिए।
अब आते है अगले अधिकार पर अगर कोई भी महिला रेप का शिकार होती है तो उसे लीगल ऑथोरिटी से मुफ्त में वकील की सेवा लेने का हक़ मिल जाता है और साथ ही साथ वो अगर वर्कप्लेस पर इस तरह की घटना का शिकार हो तो ऐसे में वो वहां की ऑथोरिटी के खिअलाफ़ भी केस कर सकती है क्योंकि कही न कही ऐसी लापरवाही के लिए वो लोग भी तो जिम्मेदार है।
वही अगर बात करे प्रॉपर्टी की तो पत्नी से जब पुरुष सम्बन्ध बना ले तो उसके बाद से ही उसे उसकी प्रॉपर्टी में आधा हक़ मिल जाता है, अगर वो प्रोपर्टी पुश्तैनी है और पति के नाम पर हो चुकी है तो वो उसमे भी हिस्सा मांग सकती है।
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